SAMAVEDA: MUSICAL ESSENCE AND CHARACTERISTICS OF THE VEDAS

सामवेद

a group of men sitting next to each other
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सामवेद: वेदों का संगीतमय सार और विशेषताएँ
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सामवेद भारतीय संस्कृति के एक प्राचीन वेदों में से एक है। यह वेद भारतीय समाज की संस्कृति, धर्म, संगीत, और उच्चता के महत्वपूर्ण स्रोतों में से एक माना जाता है। इसे 'सामवेद' कहा गया है क्योंकि इसमें सामगानों का महत्वपूर्ण स्थान है।
सामवेद का प्रमुख ध्येय वेदीय मंत्रों की सामान्य श्रुति होती है, जिसे संगीतीय पद्यों के माध्यम से पढ़ा जाता है। इन सामान्य श्रुतियों को गायन के लिए नोटों में रचा गया है और इन्हें विभिन्न संगीतीय रागों में गाया जाता है।

इसमें तीन विभाग (खंड) होते हैं: पूर्वार्चिक, मध्यार्चिक, और उत्तरार्चिक। सामवेद का भाषा वेदीय संस्कृति में होता है जिसे सामगानों के अंग्रेजी अनुवाद के माध्यम से समझा जा सकता है। यह वेद आध्यात्मिक उन्नति, ध्यान, और आंतरिक शांति को प्रकट करने का उपाय माना जाता है।

पूर्वार्चिक -
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एक प्रमुख सामवेद की खंड (भाग) है। यह सामवेद की महत्वपूर्ण एक शाखा है जो वेद के मंत्रों के गान के विविध परिप्रेक्ष्यों और विधियों का विवेचन करती है। "पूर्वार्चिक" में सामगान और यज्ञों के विधियों का विस्तारपूर्वक वर्णन होता है। यह खंड सामवेदीय गायन और वेदीय यज्ञों के आचरण के संबंध में महत्वपूर्ण ज्ञान प्रदान करता है। इसमें वेदमंत्रों के विभिन्न रूपों और उनके प्रयोग के विषय में विस्तृत विवेचन भी किया गया है। इस खंड का अध्ययन सामवेदीय गायन और यज्ञों के आचरण के विज्ञान के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।


मध्यार्चिक -
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सामवेद की एक विशेष शाखा है, जो सामवेद के मंत्रों और गानों का अध्ययन करती है। यह खंड सामवेद के गानों और मंत्रों के विविध परिप्रेक्ष्यों, विधियों, और उनके उद्देश्यों का विवेचन करता है। "मध्यार्चिक" खंड में सामवेद के मंत्रों के विभिन्न प्रकारों और गान की महत्वपूर्णता पर विवेचन होता है। यह खंड वेदीय यज्ञों के संबंध में भी महत्वपूर्ण ज्ञान प्रदान करता है। इसके अध्ययन से सामवेद के वेदीय गान, उनके आचरण, और उनका आदर्श बनाने के विधानों का विस्तार समझा जाता है।

उत्तरार्चिक -
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सामवेद की एक विशेष शाखा है जो सामवेद के मंत्रों और गानों के अध्ययन, विवेचन, और व्याख्यान का कार्य करती है। यह खंड सामवेद के गानों के पाठ, उनके उच्चारण, और उनके विविध रूपों का विवेचन करता है। इसमें सामवेद के विभिन्न गानों का अनुशीलन और उनका वैयक्तिक अर्थानुसार प्रयोग किया जाता है। उत्तरार्चिक खंड में सामवेद के गानों का विवेचन विभिन्न आयामों में किया जाता है, जैसे की उनका रहनुमा, ध्वनि, अर्थ, और उनका शास्त्रीय महत्व। यह खंड वेदीय यज्ञों के विधान और संबंधित विधियों के परिप्रेक्ष्य में भी ज्ञान प्रदान करता है।

यह वेद संगीत, राग, ताल, और ध्यान का महत्वपूर्ण स्रोत है और इसमें विभिन्न गायन पद्धतियों के मंत्र शामिल हैं। सामवेद में संगीत के अलावा भारतीय वेदांत और आध्यात्मिक उन्नति के महत्वपूर्ण विचार भी होते हैं।
इस वेद में मंत्रों के साथ संगीतीय पद्धतियों का उच्चारण किया जाता है, जिससे यह एक मधुर और भावनात्मक अनुभव प्रदान करता है। यह संगीत ध्यान और आध्यात्मिकता में मद्ध्यस्थता प्रदान करता है और व्यक्ति को आंतरिक शांति और संगीतीय अनुभव प्राप्त करने में मदद करता है।

इसके अलावा, सामवेद के मंत्रों में आध्यात्मिक उन्नति, मानवता, और संगीत की महत्ता का संदेश होता है। यह वेद ध्यान और मन की शुद्धता के माध्यम से आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में मार्गदर्शन करता है, जो एक व्यक्ति को आत्मा के साथ संबंध स्थापित करने में मदद करता है। इस प्रकार, सामवेद का महत्व भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिक विकास में अत्यधिक है।

सामवेद के बारे में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य हैं:

प्राचीनता -
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सामवेद भारतीय संस्कृति के प्राचीन वेदों में से एक है और इसे वेदों की दृष्टि से चौथा वेद माना गया है। यह वेद संगीत, राग, ताल, और ध्यान का महत्वपूर्ण स्रोत है।

भाषा -
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सामवेद संस्कृत में लिखा गया है, जो कि एक प्राचीन भारतीय भाषा है। इसमें मंत्रों की रचना पदों में होती है जो संगीतीय भाषा में होती है।

मंत्रों की भागीरथिकता -
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सामवेद के मंत्र अन्य वेदों से लिए गए हैं और इन्हें संगीत के साथ गाया जाता है। इन मंत्रों का उद्धारण विभिन्न पदों में दिया गया है।

गायन की महत्ता -
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सामवेद में गायन की महत्ता अत्यधिक है। इसमें विभिन्न गायन पद्धतियों के मंत्र हैं जो आध्यात्मिक और संगीतीय अनुभव को प्रेरित करते हैं।

वेदांतिक दृष्टि -
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सामवेद में वेदांतिक दृष्टि भी होती है जो आत्मा, ब्रह्म, और ब्रह्मा की महत्ता पर आधारित है। यहां वेदांतिक सिद्धांतों का संदेश दिया गया है।

उद्देश्य -
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सामवेद का मुख्य उद्देश्य ध्यान और आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में व्यक्ति को मार्गदर्शन करना है। इसमें व्यक्ति की आंतरिक शांति, ध्यान, और संगीतीय अनुभव के महत्व का संदेश होता है।



संगीत का अनुसरण यहाँ पर अध्ययन और प्रदर्शन के माध्यम से किया जाता था। संगीत में प्रयुक्त स्वरों की संख्या ३२ है, जिन्हें आधार, मध्यम, तार, उत्तर, तारतम्य, गान, गान्ति, गानंति, स्तायी, उत्कृष्ट, आदि नामों से पुकारा गया है। ये स्वर गायन के लिए महत्वपूर्ण हैं और इन्हें संगीत की सही धारा में अपनाना जरुरी है।

सामवेद में मूलरूप से कुल लगभग १५८२ मंत्र हैं। ये मंत्र विभिन्न गायन स्वरों में गाए जाते थे और इन्हें विशेष रागों में गाया जाता था। इन मंत्रों में वेदी, यज्ञ, देवताओं की महिमा, प्राकृतिक प्रक्रियाएं, और धर्मिक उपदेश आदि के विषय में बताया गया है। ये मंत्र संगीतिक रूप में गाए जाते थे जो यज्ञों और पूजा के समय उच्चारित किए जाते थे और इनका महत्वपूर्ण योगदान संगीत और वेदिक साहित्य के क्षेत्र में था।




सामवेद की मुख्य शाखाएँ चार हैं:- कौषीतकि, जैमिनीय, राणायनीय, और ताण्ड्यमहाब्राह्मणीय। ये चार शाखाएँ अलग-अलग शाखाओं में विभाजित होती हैं और इनमें मंत्रों की भिन्न-भिन्न विधियाँ, गायन की भिन्न शैली और यज्ञों की विविधता होती है। ये विभाजन विभिन्न क्षेत्रों और परंपराओं के अनुसार होता है।


कौथुम -
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सामवेद की एक प्रमुख शाखा है। यह सखा सामवेद के अंश या शाखा है जिसमें सामवेद के मंत्र और गान विभिन्न रूपों में गाए जाते हैं। कौथुम सामवेद का विशेषता संगीतिक शैली और ध्वनि की महत्वपूर्णता में है, और यह शाखा विशेषकर गायन की प्राधान्यता पर ध्यान केंद्रित करती है। यहाँ विभिन्न गायन पद्धतियाँ और स्वरों का प्रयोग किया जाता है जो यज्ञों में गाये जाने वाले मंत्रों को सुंदर और आकर्षक बनाते हैं।

जैमिनीय -
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सामवेद की एक प्रमुख शाखा है। यह सामवेद के वेदमंत्रों के विभिन्न भागों और गानों की शैली और पद्धति को विशेष रूप से ध्यान में रखती है। जैमिनीय सामवेद की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह अनुभवी गायकों के द्वारा प्रकट किया जाता है, जो मंत्रों को गान के रूप में प्रस्तुत करते हैं। इस शाखा के गानों में विशेष रूप से स्वर और ताल का महत्व है और ये गान विभिन्न यज्ञों और उपासनाओं के लिए प्रयोग होते हैं।

राणायनीय -
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सामवेद की एक प्रमुख शाखा है। यह सामवेद के वेदमंत्रों को विभिन्न भागों और गानों के रूप में व्याख्यान करती है। इस शाखा में गायन की विशेष परंपराएं और विधियाँ होती हैं जो वेदीय यज्ञों और उपासनाओं में प्रयोग के लिए उपयुक्त होती हैं। यह सामवेद के गानों के विविध प्रकारों और उनके उद्देश्यों का अध्ययन करती है और उन्हें विवेचित करती है। यह शाखा संगीत, गायन, और वेदीय प्रथाओं की गहन अध्ययन का केंद्र है।

ताण्ड्यमहाब्राह्मणीय -
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सामवेद की एक प्रमुख शाखा है। यह साखा सामवेद के वेदमंत्रों के विवेचन और उनके उपयोग के बारे में बताती है। इसमें वेदमंत्रों के बोध और उनके पर्याय अर्थों का विवेचन किया जाता है। यह शाखा विभिन्न रूपों में गायन की विशेष परंपराओं और पद्धतियों का भी विवेचन करती है। ताण्ड्यमहाब्राह्मणीय शाखा में वेदीय यज्ञों, रिचाएं, और उनके आचरण के विविध पहलुओं का वर्णन होता है। इससे सामवेद की विविधता और उनके अनुष्ठान के विषय में ज्ञान मिलता है।


ब्राह्मण ग्रंथ भारतीय वेदांत के महत्वपूर्ण भाग हैं, जो वेदों के विवेचन, व्याख्यान, और उनके अनुसार विभिन्न रीतियों का विवेचन करते हैं। ये ग्रंथ वेदों के मंत्रों का अर्थ और उनके अद्भुत विचारों को समझाने में मदद करते हैं।

ब्राह्मण ग्रंथ में विभिन्न यज्ञों, रीतियों, विधियों, और प्रथाओं का विस्तार से वर्णन होता है। यहां पर ब्राह्मण ग्रंथों में वेदों के विभिन्न रीतियों और यज्ञों की विस्तृत व्याख्या की जाती है, जो ब्राह्मण वर्ग की विशेषता है। ये ग्रंथ वेदीय यज्ञों की पद्धतियों और उनके आयामों को समझाते हैं ताकि लोग यज्ञों को सही तरीके से कर सकें।

ब्राह्मण ग्रंथों में यज्ञों, ज्योतिष, संस्कृति, धर्म, जीवन की उपयोगी बातें, और विभिन्न धार्मिक प्रथाओं का विस्तार से विवेचन किया जाता है। ये ग्रंथ वेदों की व्याख्या करते हैं और उनके अद्भुत भावनाओं का समझाने में मदद करते हैं।

इसकी १००१ शाखाएँ थीं, इसलिए इसे बहुत सारे ब्राह्मण ग्रंथों के रूप में उपस्थित होना चाहिए था, पर वास्तविकता में लगभग १० शाखाएँ ही उपलब्ध हैं, जैसे तांड्य, षटविँश, आदि। छान्दोग्य उपनिषद इसी वेद की एक उपनिषद है - जो सबसे बड़ी उपनिषद भी कही जाती है।

संगीत स्वर -
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नारदीय शिक्षा ग्रंथ में सामवेद की गायन पद्धति का विवरण है, जिसे हम आधुनिक हिन्दुस्तानी और कर्नाटक संगीत में स्वरों के क्रम में सा-रे-गा-मा-पा-धा-नि-सा के नाम से जानते हैं।

षडज्: सा
ऋषभ: रे
गांधार: गा
मध्यम: म
पंचम: प
धैवत: ध
निषाद: नि


सामवेद में कुछ मन्त्र ऐसे होते हैं जो साबित करते हैं कि चंद्रमा सूर्य की किरणों को विलीन करके उन्हें प्रकाशित करता है। साम मन्त्र क्रमांक २७ का भाषार्थ है: "यह अग्नि द्यूलोक से पृथ्वी तक संव्याप्त जीवों तक का पालन करता है। यह जल को रूप एवं गति देने में समर्थ है।"

सामवेद के विषय में कुछ प्रमुख तथ्य हैं:-

1-सामवेद वह ग्रंथ है जिसमें मन्त्र गाये जा सकते हैं और जो संगीतमय होते हैं।

2-यज्ञ, अनुष्ठान और हवन के समय इन मंत्रों को गाया जाता है। इसमें यज्ञानुष्ठान के उद्गातृवर्ग के उपयोगी मंत्रों का संकलन होता है।

3-इसका नाम सामवेद इसलिए है क्योंकि इसमें गायन-पद्धति के निश्चित मंत्र होते हैं।

4-इसमें अधिकांश मंत्र ॠग्वेद से लिए गए हैं, कुछ मंत्र स्वतंत्र भी होते हैं। सामवेद में मूल रूप से 99 मंत्र होते हैं और शेष ॠग्वेद से लिए गए हैं।

5-वेद के उद्गाता, गायन करने वाले जो सामग (साम गान करने वाले) कहलाते थे, उन्होंने वेदगान में केवल तीन स्वरों के प्रयोग का उल्लेख किया है जो उदात्त, अनुदात्त तथा स्वरित कहलाते हैं।

6-सामगान व्यावहारिक संगीत था, उसका विस्तृत विवरण उपलब्ध नहीं है।

7-वैदिक काल में बहुविध वाद्य यंत्रों का उल्लेख मिलता है जिनमें से तंतु वाद्यों में कन्नड़ वीणा, कर्करी, और वीणा, घन वाद्य यंत्र के अंतर्गत दुंदुभि, आडंबर, वनस्पति तथा सुषिर यंत्र के अंतर्गत तुरभ, नादी तथा बंकुरा आदि यंत्र विशेष उल्लेखनीय हैं।



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