MAA SHAILPUTRI

माँ शैलपुत्री - नवरात्रि प्रथम दिन

woman in red and gold sari dress holding white ceramic mug
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माँ शैलपुत्री
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माँ शैलपुत्री का पूजन नवरात्रि के पहले दिन, यानी प्रतिपदा तिथि को किया जाता है। यह नौ दिनों तक चलने वाले महान उत्सव में प्रथम दिन माँ शैलपुत्री की पूजा की जाती है। यह दिन नवदुर्गा माँ के शक्तिपीठों में प्रथम रूप माना जाता है और इसे पूजन का सबसे प्राचीन रूप माना जाता है। माँ शैलपुत्री नवरात्रि की प्रथम दिवस माँ दुर्गा के रूप में पूजा जाता है, जिसे हम अपनी आद्य शक्ति, माँ शैलपुत्री के साथ सम्बोधित करते हैं।

माँ शैलपुत्री ब्रह्मर्षि दक्ष प्रजापति की बेटी थीं और उनके घर जन्मी थीं। माता शैलपुत्री ने अपने बचपन में ही भगवान शिव की भक्ति में लीन होकर उनके पास गई थीं और वहां उन्होंने अत्यंत आत्म-साधना और ध्यान की प्राप्ति के लिए निश्चल चित्त से तप किया था।

माता शैलपुत्री को अग्निपेट के रूप में पूजा जाता है, जो उनके ब्रह्मचारिण रूप को दर्शाता है। उन्हें एक पंचमुखी वाहन, वृषभ पर चढ़ते हुए देवी के रूप में पूजा जाता है।

शैलपुत्री का ध्यान करते समय, उन्हें एक कमल की भूषण से युक्त बांधे हुए देवी के भवन में स्थित देवी शैलपुत्री का ध्यान करना चाहिए। उनकी पूजा करते समय मांगलिक मंत्रों का जाप करना चाहिए और मन, वचन, और क्रिया से उनके चरणों में भक्ति और समर्पण का भाव रखना चाहिए।


माँ शैलपुत्री का चित्रण -
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देवी शैलपुत्री का रूप अत्यंत मातृभावनाओं से भरा हुआ है। वे एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में ब्रह्मदंड और गंगाजल ले धारण करी हैं। उनकी चाल भयंकर और महाकारी है, जो भक्तों को दुखों और कठिनाईयों से बचाने के लिए उनके भयंकर रूप की ओर ले जाती है। उनका वाहन वृषभ (नंदी) है, जो संयम और उत्साह की प्रतिष्ठा को प्रतिष्ठित करता है।



माँ ब्रह्मचारिणी की कथा -
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एक बार की बात है, पूरे ब्रह्मांड में एक सुंदर राजकुमारी थीं, जिनका नाम उमा था। उमा ने ब्रह्मचर्य और संयम में अपना जीवन व्यतीत किया और वह भगवान शिव की पत्नी बनने के लिए निरंतर तपस्या करती रहीं। उन्होंने ब्रह्मचर्य और संयम के अद्वितीय मार्ग पर चलने के बावजूद भगवान शिव के प्रति अपने अटल प्रेम में कभी भी विचलित नहीं हुईं। उनकी आत्म-नियंत्रण और ब्रह्मचर्य की प्राप्ति ने उन्हें देवी शक्ति का रूप बनाया और उन्हें महादेव, भगवान शिव की पत्नी बनाया। यह कथा हमें यह सिखाती है कि संयम और ध्यान से हम अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं और जीवन में सफलता हासिल कर सकते हैं। इसके साथ ही, इसका संदेश यह भी है कि आत्म-नियंत्रण और आदर्शों के प्रति अपनी निष्ठा से हम किसी भी बाधा को पार कर सकते हैं और जीवन में सफलता प्राप्त कर सकते हैं। इस नवरात्रि, हम माँ ब्रह्मचारिणी की आराधना करते हैं और उनके आदर्शों का अनुसरण करके अपने जीवन को एक उच्च और देवी भक्ति युक्त दिशा में ले जाते हैं।


शैलपुत्री माँ की पूजा का महत्व -
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माँ शैलपुत्री की पूजा से भक्तों का मानना ​​है कि उन्हें संसार में सुख और शांति मिलेगी और उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी। यह पूजा उनकी कृपा और आशीर्वाद को प्राप्त करने के लिए की जाती है, और भक्त इस दिन अपने जीवन की समस्याओं और बाधाओं का निवारण प्राप्त कर सकते हैं। इसके अलावा, माँ शैलपुत्री की पूजा से भक्तों का भविष्य संवरे, और वे एक समृद्धि और आनंद से भरा जीवन जी सकें।


माँ शैलपुत्री की पूजा नवरात्रि के प्रथम दिन आयोजित की जाती है। यह दिन मां के प्रथम स्वरूप का पूजन होता है और भक्त इस दिन मां का आदर्श, शक्ति, और प्रेम भावना से पूजा करते हैं। यहां एक सरल विधि दी जा रही है मां शैलपुत्री की पूजा के लिए:



ध्यान और संकल्प -
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पूजा की शुरुआत में, ध्यान और संकल्प करें। मां शैलपुत्री के दिव्य रूप का मानन करें और आदर्श भावना से इनकी पूजा का संकल्प लें।



कलश स्थापना -
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एक कलश लें और उसे शुभ दिन और शुभ मुहूर्त में स्थापित करें। इस कलश में पानी, दुर्बे, रोली, अक्षत, नवग्रह, और लाल रंग का फूल डालें। इसे अपने पूजा स्थल पर स्थापित करें।



पंचोपचार पूजा -
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पंचोपचार पूजा में दीप, धूप, अगरबत्ती, नैवेद्य, और फूल उपयोग करें। इन्हें माँ के प्रति भक्ति और श्रद्धा भाव से समर्पित करें।



मां शैलपुत्री का मंत्र जाप -
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"ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः" मंत्र का जाप करें और इस मंत्र के माध्यम से मां शैलपुत्री का सम्मान करें। जप के समय मां के दिव्य रूप को मानकर जप करें।



वन्दे वांचितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखरम्।
वृषारुधामं शूलधारां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ||




आरती और स्तुति -
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आरती गाकर और मां की स्तुति करके उन्हें आदर्श भाव से याद करें और उन्हें स्तुति दें।



प्रसाद वितरण -
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अन्न, मिठाई, फल, या अन्य प्रसाद को मां शैलपुत्री के नाम से विशेष भाव से बनाकर और उन्हें आराधना करके प्रसाद के रूप में उन्हें अर्पित करें।



इस रीति से मां शैलपुत्री की पूजा करने से भक्तों का मानना ​​है कि वे उनके जीवन को शुभ, समृद्धि, और सुखमय बना सकते हैं। मां की भक्ति और पूजा में भावना और आदर्श के साथ समर्थन और सेवा के लिए प्रेरित करता है। यह पूजा भक्तों को मां दुर्गा के प्रति प्रेम और उत्साह में ले जाता है, और उनके जीवन को प्रेरित करता है कि वे भक्ति और सेवा में जुटे। जय मां शैलपुत्री! आपकी कृपा हमें सदा आपके चरणों में आपके भक्तिभाव से जुड़ा रहे।
इस पवित्र उत्सव में माँ शैलपुत्री की पूजा का आदान-प्रदान भक्तों के जीवन में सुख, समृद्धि, और आनंद का स्थायी स्रोत बनता है। यह दिन माँ दुर्गा की कृपा और आशीर्वाद से भरा होता है, और भक्तों को नई ऊर्जा, उत्थान, और आनंद की दिशा में अग्रसर करता है। इस दिन भक्तों को अपनी आत्मा की ऊँचाईयों तक पहुंचने के लिए प्रेरित करता है, और उन्हें देवी शैलपुत्री की आद्य शक्ति के साथ अपने जीवन का सार्थक उद्देश्य बनाने में मदद करता है।


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